Saturday, February 18

फ़राग़त के वो पल ...


अनंत सागर की वो लहरें 
और उनको निहारती तुम 
गहरे आकाश के अनगिनत तारे  
और उनको निहारती तुम 

पैरों की उँगलियों से गुज़रती लहरें
और उनको निहारती तुम 
बंद मुठ्ठी से झरती सफ़ेद रेत 
और उसको निहारती तुम  

सुर्ख अर्श के सिफर को तकता मैं 
और मुझको निहारती तुम 
क़दमों पर कदम रखता चलता मैं 
और मुझको निहारती तुम...


माज़ी को फ़लसफ़ाता मैं 
और मुझको निहारती तुम 
मुस्तकबिल का वास्ता देता मैं
और मुझको निहारती तुम... 
 
ऐसे ही दिलकश थे 
फ़राग़त के वो पल ... 

... फ़राग़त के वो चंद पल!!